28 अप्रैल, 2010

तपिश

खत चाहे जितने भी जला दो ,
मुझको न भूल पाओगे ,
अपनी चाहत को भी तुम ,
कैसे झुठला पाओगे ,
मेरी चाहत की ऊँचाई ,
तुम कभी न छू पाओगे ,
उस आग की तपिश में ,
खुद ही झुलसते जाओगे |

आशा

8 टिप्‍पणियां:

  1. कम शब्दों में ...अच्छी रचना ....प्रेम का सत्य भी

    http://athaah.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  2. Excellent expression and the content behind it is very touching and soulful. very nice Jiji. Keep it up.

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: