19 जून, 2010

जीवन मेरा

जाने कितने सपनों से
अपनी रातों को सजाया मैंने
जब उनकी सच्चाई जानी
एक भी आँसू न बहाया मैंने
हर  आँसू है मोती जैसा
उसका मोल नहीं भूली
अनमोल मोतियों की माला से
अपना गला न सजाया मैंने
सारा वैभव छोड़ दिया
जब धरातल पर पैर रखे
सहज भाव से सारे रिश्तों को
जी जान से निभाया मैंने
जीवन के अंतिम पड़ाव पर
जब भी सोचा दुःख पाया
जाने क्या खोया क्या पाया
अवसाद ने सिर उठाया
सपनों का मोल भी समझाया
तब आँखों से गिरा एक मोती भी
बहुत अनमोल नजर आया |


आशा

2 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्त की माटी पर- एक मजबूत वृक्ष की तरह -
    बहुत सुन्दर --सच्ची अभिव्यक्ति
    बधाई

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  2. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ! जीवन में अपनी अतीत पर कभी भी अवसादग्रस्त नहीं होना चाहिए ! हमने जो उचित समझा किया और हम उसके लिए कभी किसीको उत्तरदायी नहीं हैं ! ऐसा मेरा मानना है ! इसलिय्र मस्त रहिये और अपने वर्तमान का आनंद लीजिए !

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