भावुकता से भरा हुआ मैं ,
अपनी सुधबुध खो बैठा ,
आगा पीछा कुछ न देखा ,
जीवन संग्राम में कूद पड़ा ,
मेरे आहत मन की पीड़ा की ,
क्या तुम गवाह बन पाओगी ,
मेरी उखड़ी साँसों का ,
कैसे हिसाब रख पाओगी |
जीवन का सफर काँटों से भरा है ,
यह मैं अब जान पाया ,
समस्याओं से जब जूझा ,
तभी उन्हें पहचान पाया |
कठिन डगर पर चलते-चलते ,
कई बार गिरा, गिर कर सम्हला ,
जब से तुम्हारा साथ मिला ,
मैं बहुत कुछ सोच पाया |
जब कभी मैं याद करूँगा ,
क्या तुम मेरी बैसाखी बनोगी ,
ऊँची नीची पगडंडी पर ,
क्या तुम मेरे साथ चलोगी ?
आशा
बहुत सुन्दर रचना!! मन को छूती हुई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक कविता...
जवाब देंहटाएंमन को छू लेने वाली कविता लिखी है आपने। बधाई।
जब कभी मैं याद करूँगा ,
जवाब देंहटाएंक्या तुम मेरी बैसाखी बनोगी ......
मन को छूती.... सुन्दर रचना...
वक्त गुज़र जाता है ..बस यादें ही रह जाती हैं...सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर प्रस्तुति ! विश्वास की आस में किया गया मर्मस्पर्शी निवेदन बहुत अच्छा लगा ! आभार !
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