भ्रष्टाचार का दानव पनपा ,
महँगाई सीमा लाँघ गयी
जमाखोरी और रिश्वतखोरी भी ,
सारी हदें पर कर गई ,
कई लोग लिप्त हुए इसमें ,
सिक्ता कण से रमे सब में |
विषमता की विभीषिका ने ,
पग-पग पर कदम बढ़ाये अपने ,
गरीबों की जमीन हथिया कर ,
चालाक किसान धनवान हो गया ,
छोटा किसान बिना ज़मीन के ,
केवल मजदूर बन कर रह गया |
संख्या गरीबों की बढ़ी है ,
आवाज बुद्धिजीवी की ,
दवा दी जाती है ,
स्थिति देश की बिगड़ती जाती है ,
चंद हाथों में धन के सिमटने से ,
धनिक अधिक धनाढ्य हो गया ,
इस मकड़ जाल में फँस कर ,
जीना आम आदमी का कठिन हो रहा |
नेतागिरी एक धंधा बनने से ,
कई गुंडे नेता बन बैठे हैं ,
करते हैं देश हित की बातें ,
पर जेब अपनी भरते हैं ,
जब भी क्रांति आयेगी ,
जागृति समाज में लायेगी ,
सत्य की आवाज न दबाई जाएगी ,
गरीबों और अमीरों के बीच की ,
खाई पटती जायेगी ,
देश में खुशहाली आयेगी |
आशा
जब भी क्रांति आएगी ,
जवाब देंहटाएंजागृति समाज में लाएगी ,
सत्य की आवाज न दबाई जाएगी ,
गरीबों और अमीरों के बीच की ,
खाई पटती जाएगी ,
देश में खुशहाली आएगी |
हमें भी बेसब्री से उस दिन का इंतज़ार है जिस दिन गरीबों की आवाज़ सुनी जायेगी और अमीरों और गरीबों के बीच की खाई पट जायेगी ! अच्छे स्वप्न देखने का अधिकार सबको है !
उसी दिन के इन्तजार में दशक गुजरे...अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार का दानव पनपा ,
जवाब देंहटाएंमहंगाई सीमा लांघ गयी
sahi kaha aapne achhi lagi rachna
ना जाने और कितना वक्त गुज़रेगा इस इंतज़ार में ....आज के परिवेश को बताती सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंvartman parashthiti ka chitran karti hui sateek rachna..
जवाब देंहटाएंआशा तो मुझे भी है.....वो सुबह कभी तो आयेगी.....अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई....
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