02 जुलाई, 2010

एकाकी जीवन मेरा

छोटीसी जिंदगी होती है
कई अनुभवों से भरी हुई
जैसे एकाकी जीवन मेरा
पेड़ से टूटे पत्ते सा
वह जीवन ही क्या
सुख ने ना झंका जिस में
दुखों ने किनारा न किया
केवल असंतोष को जन्म दिया |
जब दुःख परचम फहराता है
मन बहुत खिन्न हो जाता है
हर समय का अकेलापन
बहुत उदास कर जाता है |
परेशानी हावी हो जाती है
नीरस जिंदगी हो जाती है
अकेलेपन से बचना चाहती है
खालीपन भरना चाहती है |
कई बार आंसूं भी
नदी में उफान की तरह आते हैं
झरने की तरह झर झर बहते जाते हैं
और अधिक उदास कर जाते है
मैं अकेला ही निकला हूं
ऐसी जिंदगी की तलाश में
जहां दुःख का साया ना हो
यदि आंसू आएं भी तो खुशी के हों
और साथी हो तो ऐसा हो
जब भी मेरे साथ चले
मेरे एकाकी जीवन मैं
रंग खुशियों के भर दे |
आशा

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