मेरी कलम की स्याही सूख गई है ,
क्या यह कोई अजूबा है ?
नहीं यह एक तजुर्बा है ,
जब मन ना हो कुछ लिखने का ,
अपने विचार व्यक्त करने का ,
तब कोई तो बहाना चाहिये ,
मन में आए इस विराम को ,
किसी का तो उलाहना चाहिए ,
कलम के रुक जाने से ,
विचारों के पैमाने से ,
स्याही छलक नहीं पाती ,
अभिव्यक्ति हो नहीं पाती ,
जब कुछ विश्राम मिल जाता है ,
फिर से ख्यालों का भूचाल आता है ,
कलम को स्याही में डुबोने का .
जैसे ही ख्याल आता है ,
विचारों का सैलाब उमड़ता है .
गति अविराम हो जाती है .
कलम में गति आ जाती है ,
सारे दरवाजे खोल जाती है ,
कलम जिसके हाथ में होती है ,
वैसी ही हो जाती है ,
साहित्यकार रचना लिखता है ,
न्यायाधीश फैसला .
साहित्यकार सराहा जाता है ,
कलम का महत्व जानता है ,
पर एक कलम ऐसी भी है ,
फाँसी की सजा देने के बाद ,
जिसकी निब तोड़ दी जाती है ,
अनगिनत विचार मन में आते हैं ,
फिर से लिखने को प्रेरित करते हैं !
आशा
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअसुबिधा के लिए क्षमा प्रार्थी हूं |अब पोस्ट प्रकाशित हो गई है |
जवाब देंहटाएंआशा
कलम के रुक जाने से ,
जवाब देंहटाएंविचारों के पैमाने से ,
स्याही छलक नहीं पाती ,
अभिव्यक्ति हो नहीं पाती ,
जब कुछ विश्राम मिल जाता है ,
फिर से ख्यालों का भूचाल आता है ,
कलम को स्याही में डुबोने का .
जैसे ही ख्याल आता है ,
विचारों का सैलाब उमड़ता है .
बिलकुल सही कहा है आपने ! कलम के रुकते ही एक रिक्तता सी आ जाती है ! एक अधूरापन सा लगने लगता है ! कलम चलते ही जीवन में भी रवानी आ जाती है ! सुन्दर रचना ! शुभकामनायें !
सच कहा आपने...कभी कभी ऐसा भी होता है.
जवाब देंहटाएंऔर हर कलम का रूप उसके लिखने वाले के ऊपर निर्भर करता हें.
सुंदर रचना.
बधाई.
सटीक अभिव्यक्ति....आज कल मैं भी इसी दौर से गुज़र रही हूँ....
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi apki kavita.
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