22 जुलाई, 2010

तमाशबीन

जन सैलाब उमढ़ता 
जाने किसे देखने को
लोगों को एकत्रित देख
राह चलते रुक जाते लोग 
कुछ और लोग जुड़ जाते है
अक्सर वे यह भी न जानते
भीड़ का कारण क्या है
फिर भी बुत से बने हुए वे
वहीं खड़े रह जाते हैं
फिर सड़क छाप जमावड़े का
पूरा मजा उठाते लोग 
जैसे ही पुलिस देखते हैं
तितर बितर भी हो जाते हैं
यदि कोई दुर्घटना हो
या दुःख का हो कोई अवसर
कुछ ही लोग मदद करते हैं
बाकी तमाशबीन होते हैं
अपने घर चल देते हैं
हर किस्से को बढा चढा कर
जब चटकारे ले कर सुनाते 
वास्तविकता क्या थी
वे यह भी भूल जाते हैं |
आशा

7 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ ही लोग मदद करते हैं ,
    बाकी तमाशबीन होते हैं ,
    अपने घर चल देते हैं ,
    हर किस्से को बढा चढा कर ,
    जब चटकारे ले कर सुनाते हैं ,
    वास्तविकता क्या थी ,
    वे यह भी भूल जाते हैं |
    .yatharthpurn samvedansheel rachna ke liye aabhar

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  2. आस-पास की घटनाओं का
    शाब्दिक विवरण ...
    सुन्दर काव्य . . . !
    आपकी जागरूकता भी झलकती है
    अभिवादन

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  3. बिलकुल सच्चाई दिखा दी आपने ! यही होता है वास्तविकता में ! हर घटना दुर्घटना का कारण जान सिर्फ अपना कौतुहल शांत करना और मनोरंजन कर लेना बस यहीं तक आज कल लोगों की भूमिका होती है, सहायता करने के नाम पर सब खिसकना चाहते हैं ! सुन्दर और प्रेरणाप्रद रचना !

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  4. रोचक शाब्दिक विवरण,
    आभार...

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