है खंजन नयन ,चंचल चपल ,
मद मस्त चाल हिरणी सी ,
कभी लगती ठंडी बयार सी ,
फिर भी है विरोधाभास ,
तू है उदास विरहणी सी ,
वेदना के स्त्रोत क्यूँ,
साथ लिए रहती है ,
है जीवन की भरपूर आस ,
ना हो उदास ,
उससे दूर क्यूँ रहती है ,
तू नहीं जानती ,
है कितनी अमूल्य तू ,
है तुझ में ऐसी तपिश ,
जो चाहे कर सकती है ,
कभी ठंडी हिम पिंड सी ,
दावानल की तरह ,
कभी उग्र भी हो सकती है ,
अपनी क्षमता को पहचान ,
ना रह इससे अनजान ,
दृढता से उठे कदम ,
ऊँचाई तक पहुंचाएंगे ,
तेरी पहचान बनापाएंगे ,
मत भूल अपनी क्षमता को ,
ना ही सीमित कर क्षेत्र को ,
जब लोग तुझे जानेंगे ,
तेरी पहचान पुष्ट होगी ,
दुनिया तब बैरी ना होगी ,
जिस भी क्षेत्र में कदम रखेगी ,
सफलता के उत्तंग शिखर पर ,
तू सहज ही चढ़ पाएगी |
आशा
bahut sunder kavita hamesha ki tarah.
जवाब देंहटाएंParnaam asha maa
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना के लिये बधाई !
bete ke janamdin par blog par swagat hai...
अनुपम .........
जवाब देंहटाएंमनभावन काव्य
बहुत प्यारी रचना -
जवाब देंहटाएंअपनी क्षमता से पहचान कराती हुई -
शुभकामनाएं .
waah bahut utsaah vardhan kiya hai aapne is rachna ke maadhyam se.
जवाब देंहटाएंsunder kriti.
बहुत सुन्दर रचना है और मन में अपार शक्ति का संचार करने की क्षमता रखती है ! इतनी प्राणवान और प्रेरक रचना के लिए आपका ढेर सारा अभिनन्दन, धन्यवाद एवं आभार !
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