22 अक्तूबर, 2010

है जीवन काँटों की बस्ती ,

है जीवन काँटों की बस्ती ,
जो भी इस में रहता है
,बच नहीं पाता उनसे ,
एक ना एक चुभ ही जाता है ,
सहन करना है बहुत कठिन ,
मिलता दंश जो उससे ,
कभी नहीं मिट पाता |
है जीवन दुखों का समुन्दर ,
यदि तैरना नहीं आता ,
कोई बाहर निकल नहीं पाता ,
तब डूब ही जाना है ,
व्यर्थ है हाथ पैर मारना |
हर ओर निराशा ही हो ,
आशा की किरण,
न दिखाई दे ,
हो छुपी कहीं गहरे में ,
उसकी एक झलक पा कर ,
जीवन हरा भरा होता है ,
पर है वह क्षणिक ,
उसमे यदि खो जाओ ,
स्वयं को भी भूल जाओ ,
ढेरों खुशियाँ आ सकती हें |
पर जीना केवल अपने लिए ,
है नहीं उचित किसी के लिए ,
है परोपकार भी आवश्यक ,
थोड़ा हित किसी का हो ,
तब उसमे है बुराई क्या |
जो कुछ भी करोगे,
वह यादों में रह जाएगा ,
जो किया अपने लिए,
उसे ना कोई जानेगा ,
ना ही तुम्हें पहचानेगा ,
तुम कृपण समझे जाओगे ,
यदि काम किसी के ना आओगे |
विहंगम द्रष्टि डाल कर देखो ,
जिसने भी परोपकार किया ,
छोड़ कर दुनिया भी चल दिया ,
पर दुनिया ने उसे,
बारम्बार याद किया ,
यथोचित सम्मान दिया |
आशा

22 टिप्‍पणियां:

  1. विहंगम द्रष्टि डाल कर देखो ,
    जिसने भी परोपकार किया ,
    छोड़ कर दुनिया भी चल दिया ,
    पर दुनिया ने उसे,
    बारम्बार याद किया ,
    यथोचित सम्मान दिया |
    आशा जी बिलकुल सही कहा। केवल अपने लिये जीना ही जीवन का लक्ष्य नही होना चाहिये। अच्छी लगी रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत प्रेरक रचना।

    भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
    पक्षियों का प्रवास-१

    जवाब देंहटाएं
  3. सकारात्मक सन्देश प्रसारित करती एक सार्थक रचना ! शानदार रचना के लिये बधाई एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर संदेश देती सार्थक रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेह‍तर रचना। अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  6. कविता का अन्त लाजवाब् है और मन को मोह लेता है ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुख के बादल कभी न बरसे,
    दुख-सन्ताप बहुत झेले हैं।
    जीवन की आपा-धापी में,
    झंझावात बहुत फैले हैं!
    --
    वास्तव में ऐसा ही तो है जीवन!
    --
    सुन्दर रचना के लिए बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  8. very nice.
    jeevan anubhavon ka naam hai,so kya kante kya phool,please always be cool...

    cbjainbigstar.blogspot.com

    Aap jaise logon ko hamare sanskriti sanrakshan aur sanskar pallawan abhiyan se judna chahiye

    जवाब देंहटाएं
  9. अचॆ रचना सो कुछ अच्छा करने को प्रेरित करती है।

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर अभिव्यक्ति. अच्छा प्रस्तुतिकरण. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत प्रेरणादायी रचना है, आपका आभार एवं नमन!

    जवाब देंहटाएं
  12. उस्ताद जी की टिप्पणी सटीक ज रही है।

    ---सच है आशाजी ,"काजल की कोठरी में,कितनो हू सयानो जाय।
    एक लीक काजल की लागिहै तो लागिहै।"---पर इस डर से हम अच्छे कर्म करना तो नहीं छोड सकते---ये ही अन्ततः काम आते हैं---अच्छे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते।

    जवाब देंहटाएं
  13. आशाजी,

    " कबीर कूता राम का मुतिया मेरा नाम ।
    गले राम की जेबडी, जित खैंचै तित जाउं।----अच्छा लगा सुनकर आपके ब्लोग पर स्वीकारोक्ति, कि आप डाक्टर बनना चाहतीं थीं और एकोनोमिस्ट बन गयी।--"man praposes god disposes"
    ---यह कोई निराशावाद, अन्धविश्वास, आत्मविश्वास की कमी , भाग्यवाद आदि नहीं है, जो शायद तमाम लोग कहें ,परन्तु होता सदा एसा ही है। कर्म से भाग्य बनता है पर --भाग्य में होने पर ही मानव वह कर्म कर पाता है।----और भाग्य में क्या है कोई नही जानता- ज्योतिषी भी नहीं , न जाने हुए पर विश्वास करना..?????

    जवाब देंहटाएं
  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  15. ब्लॉग पर आने के लिए आप सब का आभार |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  16. जिंदगी के अंधेरे समयों में उम्मीद का दिया जलाए रखें और अपने दुखों को भूल कर परोपकार को जीने का मूल मंत्र बना कर आगे बढ़ते रहें. इन गहन संवेदनाओं से परिपूर्ण संदेश को बेहद खूबसूरती से पिरोया गया है. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

    जवाब देंहटाएं
  17. सकारात्मक सन्देश, सार्थक रचना ..... बधाई .....

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: