23 अक्तूबर, 2010

पर्वत पर बिछी सफेद चादर

पर्वत पर बिछी श्वेत चादर
  और धवल धरा सारी  
लगती बेदाग़ सफेद चादर सी 
 है सिंधु उदगम यहीं पर 
 यह है रेगिस्तान बर्फ का
  दुनिया की सबसे ऊँची सड़क
 जिस पर गुजरते वाहन 
 नहीं वह भी अछूती बर्फ से 
 यदि विहंगम द्रष्टि डालें 
 दिखती है बिछी सफेद चादर सी 
 जाड़ा कम ही लगता है 
 जब गुजरते सड़क से 
 फिर भी भय रहता है 
 कहीं फिसल ना जाएं 
 कोई हादसा ना हो जाए 
, गाड़ी पिघलती बर्फ 
 और बर्फीला द्रश्य 
 कहीं कहीं पानी सड़क पर 
धीमी गति से गाडी बढ़ना 
 लगता है पैदल चल रहे हें 
एक ओर दीवार बर्फ की 
दूसरी ओर गहरी खाई 
रूह कांप जाती है 
जब दृष्टि पडती खाई पर 
वहाँ बने बंकरों में 
 रहते देश के रक्षक 
 होता जीवन कठिन उनका 
 पर सच्चे निगहवान देश के 
 सदा प्रसन्न होते हें 
 जब मिलते किसी भारत वासी से 
 देख उनकी कठिन तपस्या 
 श्रद्धा से नत होता मस्तक | 
आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. sundar varnan un margo kaa leh laddhaakh najron se gujar jata hai... Vatvriks mei meri kavita par aapki tippani thee... Shriday Dhanyvaad

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  2. आज प्रथम बार दस्तक दे रहा हूँ, आपके ब्लॉग पर!
    अब आना-जाना चलता रहेगा!

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  3. दिल को छू लेने वाले सुंदर शब्द चित्र. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  4. आपकी संवदेनाएँ मन को सोचने के नए आयाम दे जाती हैं।

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  5. बहुत भावपूर्ण...

    इस भावपूर्ण लेखन के लिए आभार स्‍वीकार कीजिए..

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  6. सुन्दर संस्मरणात्मक रचना ! अच्छा शब्द चित्र खीचा है आपने रचना के माध्यम से ! बधाई एवं आभार !

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  7. जब दृष्टि पडती खाई पर ,
    वहाँ बने बंकरों में ,
    रहते देश के रक्षक ,..

    सलाम है ऐसे वीरों को ... भावना पूर्ण रचना ....

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