दिल से आवाज आई है ,
कि एक गज़ल लिखूं
वीरान फ़िजाओं पर,
कुछ न कुछ कहूं ,
मंजर उदास लम्हों का ,
कैसे बयां करू,
लफ्ज़ों का कोई ,
ज़खीरा नहीं मिलता ,
दिल में उठे गुबार का ,
कोई हमराज नहीं मिलता ,
रहता हूं तन्हां तन्हां ,
अपना वजूद खोजता हूं ,
गर तेरे दामन की हवा ,
तनिक छू गई होती ,
शायद कोई सितम ,
और ना सहा होता ,
सिलसिला गज़ल का ,
शुरू हुआ होता ,
जलती शमा कि रोशनी में ,
परवाने की तरह ,
शब् भर रहा होता ,
नज्म यूँ ही न बनी होती ,
गर मेरे दिल से ,
आह न निकली होती |
आशा
मंजर उदास लम्हों का ,
जवाब देंहटाएंकैसे बयां करू,
लफ्ज़ों का कोई ,
ज़खीरा नहीं मिलता...
आशा जी- प्रणाम।
उदास लम्हों को भी आपने अपने शब्दों से ताजगी प्रदान कर दी है। बेहतरीन रचना है..
लफ्ज़ों का कोई ,
जवाब देंहटाएंज़खीरा नहीं मिलता ,
दिल में उठे गुबार का ,
कोई हमराज नहीं मिलता ,
yoon to aapko padhna hamesh ahi acchha lagta hai parantu iss baar aisa laga jaise ye to meri bhi daastaan hai...
aisa hi kuchh likhne kee koshish kee the..
plz visit...
http://poojashandilya.blogspot.com/2010/09/blog-post_21.html
बहुत सुन्दर नज्म है!
जवाब देंहटाएं--
इसे गजल कहना बेमानी होगा!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
अच्छी और भावपूर्ण रचना ! अक्सर ऐसा होता है जब कुछ कहना चाहते हैं तब शब्द साथ नहीं देते और जब शब्दों का जखीरा हाथ लग जाता है तो संवेदनाएं क्षीण पड़ जाती हैं ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंbahut khoob nazm.........
जवाब देंहटाएंwaah waah
आशा जी!
जवाब देंहटाएंउच्चारण पर कमेंट करने के लिए धन्यवाद!
उज्जैन महाकाल के दर्शन करने का मन है!
मेरा मेल है-
roopchandrashastri@gmail.com
और आपका?
Asha ji , najm ne bayaan ho kar itne sare hamraj banaa liye hain ...
जवाब देंहटाएंsundar rachna!
जवाब देंहटाएंसोचने सोचने में ही लाजवाब नज़्म बन गयी .... बहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंआह ही कविता बन पाती है...सब कुछ मनचाहा मिल ही जाए तो कविता बनेगी कैसे...
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