ऐ दिल तुझे क्या हो गया है
गलत कदम उठाया क्यूँ
रिश्ता ऐसा बनाया क्यूँ
जो निभाना संभव न था
था नियम विरुद्ध समाज के
लोगों ने रोकना चाहा
कुछ ने तो टोका भी
तब भी सचेत ना हो पाया
और गर्त में फँसता गया
वापिस लौट नहीं पाया
बहुत व्यस्त किया स्वयं को
फिर भी भूल नहीं पाया
बार-बार वही बात, वही रोना
उसमें ही खोये रहना
अब तो दर्द भी
दिखने लगा है चेहरे पर
यह कितने दिन यूँ ही रहेगा
ना कोई दवा इसकी
और ना कोई असर इस पर
भूले से जो भूल हुई थी
यदि उसे सुधारा होता
पूरी तरह भुला दिया होता
नियंत्रण खुद पर रखा होता
तब तू यूँ बेचैन ना होता |
आशा
यही तो दिल की लगी है ...
जवाब देंहटाएंदिल के आगे सब बेबस हैं,
जवाब देंहटाएंदिल पर किसका जोर चला है .
मन की उथल पुथल का सशक्त चित्रण ! अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंवाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
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