15 दिसंबर, 2010

कल्पना ही रोमांचक है

दी है दस्तक दरवाज़े पर
ठंडी हवा ने, जाड़े ने
और गुनगुनी धूप ने
बेटे का स्वेटर बुन रही हूँ
जल्दी ही पूरा हो जायेगा
क्या करती कोई नई बुनाई
ना मिल पाई थी
उसे खोजने में ही
इतने दिन यूँही बीत गये
कई किताबें देखीं
पत्रिकाएँ खरीदीं
पर वही घिसे पिटे नमूने
कुछ भी तो नया नहीं था
छोटे मोटे परिवर्तन कर
की गयी प्रस्तुति उनकी
देख मन खराब हुआ ,
फिर पुराना जखीरा नमूनों का
खुद ही खोज डाला
नर्म गर्म उन का अहसास
सलाई पर उतरते फंदे
और जाड़ों की कुनकुनी धूप
बेहद अच्छी लगती है
उँगलियों की गति
तीव्र हो जाती है
और जुट जाती हूँ
उसे स्वेटर में सहेजने में
जब वह उसे पहन निकलेगा
उसे रोक कोशिश होगी
स्वेटर देख कर
नमूना उतारने की
असफलता जब हाथ लगेगी
सब को बहुत कोफ्त होगी
बुनाई क़ी होड़ में
सबसे आगे रहने में
जो आनंद मिलेगा
उसकी कल्पना ही रोमांचक है !


आशा





,

11 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    कविता मन को छू गयी।
    सर्दी के आगमन का अहसास जिस तरह से इस कविता ने कराया
    उसका जवाब नही
    सुन्दर कविता के लिए बधाई

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  2. KUCH LINE PESH HAI..
    शीत ऋतू की फिर से होगी शुरुआत
    फिर से होगी माघ और पूस की रात
    कुल्फी ठंडई अब कीसी को न भाएगी
    गरमा गर्म चाय पकौरे सब का जी ललचाएगी

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  3. दी है दस्तक दरवाजे पर ,ठंडी हवा ने ,जाड़े ने..... अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।

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  4. maa ! ke haath se bune sweatar me garmi bhi to khoob hogi .mere blog ''shalinikaushik2.blogspot.com '' par aapka hardik swagat hai !

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  5. Maa ke wasaly ko ek kriyatmak roop deti sundar rachnaa.....Mujhe bhi maa ki yaad aa gayee wah 90 plus me chal rahi hai lekin ab bhi apni nahin bachhon ki fikr jyaadaa hai Maa ki mamta ko pranam, unhe prastut karnewaale ko bhi pranam...

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  6. asha di aapki kavita se pata chal gaya thandak aa gayee hai.............:)

    di kabhi hamare blog pe aao na.........mana aapke did ke kabil nahi main..........par mera shouk to dekh, intzaar to kar..........:)

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  7. फिर पुराना जखीरा नमूनों का ,
    खुद ही खोज डाला ,
    नरम गर्म उन का अहसास ,
    सलाई पर उतरते फंदे ,
    और जाड़ों की कुनकुनी धुप ,
    बेहद अच्छी लगती है ,
    उँगलियों की गति,
    तीव्र हो जाती है ,
    और जुट जाती हूँ,
    उसे स्वेटर में सहेजने में
    ....माँ जी यहाँ भी बहुत ठण्ड हैं ..... बिना स्वेटर बाहर निकलना नहीं हो रहा है आपकी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा ...

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  8. माँ जी
    ..........माँ की परिभाषा
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
    धन्यवाद

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  9. बढ़िया प्रस्तुति ! बुनाई के नमूने का फोटो भी लगा देतीं तो और मज़ा आ जाता ! बेटे के अलावा हम भी हैं क्यू में ! कभी हमें भी याद कर लिया कीजिये ! बहुत सुन्दर रचना ! मन को भा गयी !

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