मै हूँ एक छोटी पतंग 
रंग बिरंगी प्यारी न्यारी 
बच्चों के दिल  की हूँ रानी 
एक दिन की हूँ मेहमान |
सारे साल प्रतीक्षा रहती 
ख़त्म हो गयी आज 
छुटकी देती मुझको छुट्टी 
मेरी डोर कहीं ना अटकी |
आसमान की लम्बी सैर 
नहीं किसी से कोई बैर 
बच्चों की प्यारी किलकारी 
मन में भरती उमंग हजारी |
तरह-तरह के कितने रंग 
कई सहेली मेरे संग 
मुझ में भरती नई उमंग 
मै हूँ एक नन्हीं पतंग |
ठुमक-ठुमक के आगे बढ़ती 
फिर झटके से आगे जाती 
कभी दाएं कभी बायें आती 
जब चाहे नीचे आ जाती|
यदि पेच में फँस जाती 
लटके झटके सब अपनाती 
नहीं किसी से यूँ डर जाती 
सारी तरकीबें अपनाती |
जब  तक पेंच पड़ा रहता है 
साँसत में दिल बड़ा रहता है 
फिर डोर खींच अनजान नियंता 
मुझको मुक्ति दे देता है |
मुक्त हो हवा के साथ मैं 
विचरण करती आकाश में 
मेरा मन हो जाता  अंनग
मैं हूँ इक नन्हीं पतंग |
आशा
15 जनवरी, 2010
14 जनवरी, 2010
आतंक
जब कोई धमाका होता है ,
घना कोहरा छा जाता है ,
आतंक का घना साया ,
थर्रा देता है धरती को
सहमा देता है जन मानस को |
सन्नाटा अपने पैर जमाता ,
दिल दहल दहल रह जाता है ,
कम्पित होता है सकल जहाँ ,
पर हल कोई नजर नहीं आता !
राजनीति की रोटियाँ सेकी जाती हैं ,
सरहद भी बची नहीं इससे !
बेचा जाता है ईमान यहाँ ,
तब हरी भरी वादी में ,
आतंक अपना पैर जमाता है |
बड़े बड़े झूठे वादे ,
भ्रमित करते हैं जन जीवन को ,
इतनी भी साँस न ले पाते ,
सिसकते हुए अरमान यहाँ |
जब सोती है सारी दुनिया ,
जगती रहती है छोटी मुनिया ,
अंधकार के साये में ,
माँ उसको थपकी देती है ,
अपने बेजान हाथों से ,
उसको गोदी में लेती है |
हर आहट उसे हिलाती है ,
वह चौंक-चौंक रह जाती है ,
शायद कहीं कोई आये,
व्यर्थ हुआ इंतज़ार उसे रुलाता है ,
न ही कोई आता है ,
और न ही कोई आयेगा |
अविरल आँसुओं की झड़ी ,
ना तो रुकी है न रुक पायेगी ,
उसकी आँखें पथरा जायेंगी ,
करते करते इंतजार ,
आतंक बाँह पसारेगा ,
न होंगे सपने साकार,
यह आतंक का साम्राज्य ,
ले गया घरों का सुख छीन कर ,
कितनों के उजड़ गये सुहाग ,
किस माँ की उजड़ी गोद आज ,
बहनों ने भाई खोये हैं ,
उम्मीदों पर लग गये विराम ,
आतंकी दंश लगा सबको ,
जब दहशत गर्दों नें ,
फैलाये अपने पंख विशाल ।
आशा
घना कोहरा छा जाता है ,
आतंक का घना साया ,
थर्रा देता है धरती को
सहमा देता है जन मानस को |
सन्नाटा अपने पैर जमाता ,
दिल दहल दहल रह जाता है ,
कम्पित होता है सकल जहाँ ,
पर हल कोई नजर नहीं आता !
राजनीति की रोटियाँ सेकी जाती हैं ,
सरहद भी बची नहीं इससे !
बेचा जाता है ईमान यहाँ ,
तब हरी भरी वादी में ,
आतंक अपना पैर जमाता है |
बड़े बड़े झूठे वादे ,
भ्रमित करते हैं जन जीवन को ,
इतनी भी साँस न ले पाते ,
सिसकते हुए अरमान यहाँ |
जब सोती है सारी दुनिया ,
जगती रहती है छोटी मुनिया ,
अंधकार के साये में ,
माँ उसको थपकी देती है ,
अपने बेजान हाथों से ,
उसको गोदी में लेती है |
हर आहट उसे हिलाती है ,
वह चौंक-चौंक रह जाती है ,
शायद कहीं कोई आये,
व्यर्थ हुआ इंतज़ार उसे रुलाता है ,
न ही कोई आता है ,
और न ही कोई आयेगा |
अविरल आँसुओं की झड़ी ,
ना तो रुकी है न रुक पायेगी ,
उसकी आँखें पथरा जायेंगी ,
करते करते इंतजार ,
आतंक बाँह पसारेगा ,
न होंगे सपने साकार,
यह आतंक का साम्राज्य ,
ले गया घरों का सुख छीन कर ,
कितनों के उजड़ गये सुहाग ,
किस माँ की उजड़ी गोद आज ,
बहनों ने भाई खोये हैं ,
उम्मीदों पर लग गये विराम ,
आतंकी दंश लगा सबको ,
जब दहशत गर्दों नें ,
फैलाये अपने पंख विशाल ।
आशा
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