21 जनवरी, 2011

होता मोती अनमोल

सागर में सीपी
सीपी में मोती ,
वह गहरे जल में जा बैठी
आचमन किया सागर जल से
स्नान किया खारे जल से
फिर भी कभी नहीं हिचकी
गहरे जल में रहने में
क्योंकि वह जान गई थी
एक मोती पल रहा था
तिल-तिल कर बढ़ रहा था
उसके तन में
पानी क्यूँ ना हो मोती में
कई परतों में छिपा हुआ था
जतन से सहेजा गया था
यही आभा उसकी
बना देती अनमोल उसे
बिना पानी वह कुछ भी नहीं
उसका कोई मूल्य नहीं
सारा श्रेय जाता सीपी को
जिसने कठिन स्थिति में
हिम्मत ज़रा भी नहीं हारी
हर वार सहा जलनिधि का
और आसपास के जीवों का
क्योंकि मोती पल रहा था
अपना विकास कर रहा था
उसके ही तन में
था बहुत अनमोल
सब के लिये |

आशा

5 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय आशा माँ
    नमस्कार !
    ....बहुत अनमोल सब के लिये |

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  2. आदरनीय मम्मी जी बहुत ही गहरी विचार से भरी रचना दिए हैं आपने सही कहा बिल्कुल ....

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  3. आचमन किया सागर जल से
    स्नान किया खारे जल से
    फिर भी कभी नहीं हिचकी
    गहरे जल में रहने में
    क्योंकि वह जान गई थी
    एक मोती पल रहा था
    तिल-तिल कर बढ़ रहा था
    उसके तन में
    __

    अत्यन्त उत्तम काव्य !

    बधाई और हार्दिक प्रणाम !

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