18 मई, 2011

कहर गर्मी का


कड़ी धूप लू के थपेड़े

बहुत कष्ट देते हैं

जब पैरों में चप्पल ना हों

डम्बर तक पिघलने लगता है

पक्की सड़क यदि हो |

धरती पर पडती दरारें

गहरी होती जाती हैं

लेती रूप हवा अंधड का

गुबार उठता रोज धूल का

बढता जाता कहर गर्मी का |

फिर भी कोई काम नहीं रुकता

निर्वाध गति से चलता रहता

बस गति कुछ धीमी होती है

दोपहर में सड़कें अवश्य

सूनी सी लगती हैं |

यह तपन गर्मी की चुभन

ऊपर से आँख मिचौली बिजली की

हर कार्य पर भारी पड़ती है

जाने कितने लोगों का

जीवन बदहाल कर देती है |

होता जन जीवन अस्त व्यस्त

पर एक आशा रहती है

इस बार बारिश अच्छी होगी

क्यूंकि धरती तप रही है

उत्सुक है प्यास बुझाने को |

अच्छी बारिश की भविष्य वाणियां

मन को राहत देती हैं

कभी सत्य तो कभी असत्य भी होती हैं

फिर भी वर्तमान में

कटते पेड़ तपती दोपहर

और बिजली की आवाजाही

सारी सुविधाओं के साधन

यूँ ही व्यर्थ कर देती हैं |

सब इसे सहते हैं सह रहे हैं

आगे भी सहते जाएंगे

प्रकृती से छेड़छाड़ का

होता है यही परिणाम

इससे कैसे बच पाएगे |

आशा

10 टिप्‍पणियां:

  1. Chilchilati garmi ka khub varnan kiya hai. Jai hind jai bharat

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  2. garmi ka kahar.प्रकृती से छेड़छाड़ का

    होता है यही परिणाम

    इससे कैसे बच पाएगे |bahut sahi likha hai aapne Aasha ji.bahut achchi rachna.

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  3. बिलकुल सच कह रही हैं आप ! प्रकृति से छेड़छाड़ का ही खामियाजा सब भुगत रहे हैं ! जितने वृक्ष काटे जायेंगे उतनी की गर्मी की आपदा को सहना पडेगा ! यह समस्या जितनी महानगरों की है उतनी ग्रामों में नहीं है जहाँ अभी पर्यावरण से बहुत अधिक छेड़छाड़ नहीं की गयी है ! वहाँ लोग अभी भी छायादार वृक्षों के नीचे ठंडी हवा का आनंद उठा पाते हैं ! बहुत बढ़िया रचना ! बधाई !

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  4. प्रकृती से छेड़छाड़ का

    होता है यही परिणाम

    इससे कैसे बच पाएगे |


    सच ही लिखा है आपने

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  5. बहुत सुन्दर रचना!
    अभी तो पूरा एक महीना बाकी है
    यह गर्मी सहन करने के लिए!

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  6. सुंदर कविता आशा जी| प्रकृति से छेड़छाड़ के नतीजे भुगतने को अभिशप्त है मनुष्य|

    खुद बता कर धता, पर्यावरण को अरसे से|
    शोध अब कर रहे, हद लाँघता - सागर क्यूँ है||

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  7. हर कोई चाहता है, गर्मी से बचना,

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  8. चर्चा -मंच पर आपका स्वागत है --आपके बारे मै मेरी क्या भावनाए है --आज ही आकर मुझे आवगत कराए -धन्यवाद !२०-५-११ ..
    http://charchamanch.blogspot.com/

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