सुबह से शाम तक
फिरता रहता हूँ
सड़क पर
यहाँ वहाँ |
फटी कमीज पहने
कुछ खोजता रहता हूँ
शायद वह मिल जाए
मेरे दिल की दवा बन जाए |
मेरी गरीबी
मेरी बेचारगी
कोई समझ नहीं सकता
जिसे मैं भोग रहा हूँ |
एक दिन मैंने देखा
वह खुले बदन
ठण्ड से काँप रहा था
ना जाने क्यूँ
मुझे दया आई
अपनी गरीबी याद आई
कमीज उतारी अपनी
उसे ही पहना दी |
उसकी आँखों की चमक देख
संतुष्टि का भाव देख
मन में अपार शान्ति आई |
बस अब मेरे साथी हैं
यह फटा कुर्ता और पायजामा |
तेल बरसों से
बालों ने न देखा
आयना भी ना देखा
कभी खाया कभी भूखा रहा
फिर भी हाथ ना फैलाया |
क्या करू हूँ गरीब
समाज से ठुकराया गया
यह जिंदगी है ही ऐसी
कुछ भी न कर पाया |
गरीबी के दंशों से
बच भी नहीं पाया |
क्यूँ दोष दूं किसी को
हूँ पर कटे पक्षी सा
फिर भी रहता हूँ
अपनी मस्ती में |
जहां किसी का दखल नहीं है
कोई पूंछने वाला नहीं है
मुझे किसी की
ना ही किसी कोमेरी जरूरत है |
आशा
बहुत खूबसूरत रचना ! एक मुफलिस के मन में उठते उद्गारों का बहुत सूक्ष्मता से वर्णन किया है ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंमेरी गरीबी
जवाब देंहटाएंमेरी बेचारगी
कोई समझ नहीं सकता
जिसे मैं भोग रहा हूँ |
aasaan nahi , sab khud tak simit hain
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएंकुछ चुने हुए खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .
मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.
जवाब देंहटाएंदिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?
मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.
मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो
bahut sundar yaha bhi aaye
जवाब देंहटाएंतेल बरसों से
जवाब देंहटाएंबालों ने न देखा
आयना भी ना देखा
बहुत खूब ................ बात कहने का अंदाज़ निराला लगा दीदी|
गरीबी में जीने वाले ही समझ सकते हैं गरीबी का दर्द। शायद इन हालातों में जीते रहने के बाद इंसान मुस्कुराना भी सीख ही लेता है।
जवाब देंहटाएंअद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसही बात कही है आपने.जिस पर बीतती है वाही जानता है दर्द क्या होता है.
जवाब देंहटाएं------------------------------------------------
कल 21/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
मेरी गरीबी
जवाब देंहटाएंमेरी बेचारगी
कोई समझ नहीं सकता
जिसे मैं भोग रहा हूँ | ..बहुत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति...आभार..अभिव्यंजना मे आप का स्वागत है..