आचरण समाज का
है प्याज के छिलके सा
जब तक उससे चिपका रहता
लगता सब कुछ ठीक सा |
हैं अंदर की परतें
समाज में होते परिवर्तन की
प्रतीक लगती हैं
अंदर होते विघटन की |
दिखते सभी बंधे एक सूत्र में
फिर भी छिपते एक दूसरे से
पीठ किसी की फिरते ही
खंजर घुसता पीछे से |
तीव्र गंघ आती है
किसी किसी हिस्से से
यदि काट कर न फेंका उसे
प्रभावित और भी होते जाते |
ये तो हैं अंदर की बातें
बाहर से सब एक दीखते
आवरण से ढके हुए सब
अच्छे प्याज की मिसाल दीखते |
बाह्य परत उतरते ही
स्पष्ट नजर आते
टकराव और बिखराव
उसी संभ्रांत समाज में |
है कितनी समानता
प्याज में और समाज में
छिलके उतरते ही
दौनों एकसे नजर आते |
फिर असली चेहरा नजर आता
खराब होते प्याज का
या विघटित होते समाज का
जैसे ही छीला जाता
आंखें गीली कर जाता |
आशा
sundar...
जवाब देंहटाएंशानदार बिम्ब ले कर यथार्थ लिखा है ..
जवाब देंहटाएंउत्तम भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत....
जवाब देंहटाएंपहली बार हूं आपके ब्लॉग पर...अच्छा लगा..
अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से 1 ब्लॉग सबका
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 08 -09 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज ... फ़ोकट का चन्दन , घिस मेरे नंदन
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्त|
जवाब देंहटाएंबिलकुल सटीक बिम्ब लिया है प्याज का आपने ! यहाँ ऐसे ही लोग हैं जो पर्त दर पर्त प्याज के छिलकों की तरह ही आवरण ओढ़े रहते हैं और जब अपने असली रूप में नज़र आते हैं बहुत तकलीफ देते हैं ! बहुत सार्थक एवं सुन्दर रचना ! बधाई !
जवाब देंहटाएंसुन्दर उपमा का प्रयोग ...समाज और प्याज..वाह !!
जवाब देंहटाएंआचरण समाज का
जवाब देंहटाएंहै प्याज के छिलके सा
जब तक उससे चिपका रहता
लगता सब कुछ ठीक सा |
बहुत सही बात काही आपने।
सादर
ये तो हैं अंदर की बातें
जवाब देंहटाएंबाहर से सब एक दीखते
आवरण से ढके हुए सब
अच्छे प्याज की मिसाल दीखते |
आज के समाज का सुन्दर चित्रण
कविता के लिए बधाई स्वीकार करें
बेहतरीन बिम्ब प्रयोग ……………सारी सच्चाई बयाँ कर दी।
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत शब्द विन्यास, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
क्या खूब लिखा है । सडता प्याज और आज का समाज । होना चाहिये अच्छे प्याज सा जो अनेकता में भी एकता लिये एकजुट रहे ।
जवाब देंहटाएंप्याज का बिम्ब और समाज ... अच्छा प्रयोग है बहुत ही ...
जवाब देंहटाएंवाकई, प्याज के छिलके सा आचरण ही है...
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