07 सितंबर, 2011

प्याज क छिलके


आचरण समाज का

है प्याज के छिलके सा

जब तक उससे चिपका रहता

लगता सब कुछ ठीक सा |

हैं अंदर की परतें

समाज में होते परिवर्तन की

प्रतीक लगती हैं

अंदर होते विघटन की |

दिखते सभी बंधे एक सूत्र में

फिर भी छिपते एक दूसरे से

पीठ किसी की फिरते ही

खंजर घुसता पीछे से |

तीव्र गंघ आती है

किसी किसी हिस्से से

यदि काट कर न फेंका उसे

प्रभावित और भी होते जाते |

ये तो हैं अंदर की बातें

बाहर से सब एक दीखते

आवरण से ढके हुए सब

अच्छे प्याज की मिसाल दीखते |

बाह्य परत उतरते ही

स्पष्ट नजर आते

टकराव और बिखराव

उसी संभ्रांत समाज में |

है कितनी समानता

प्याज में और समाज में

छिलके उतरते ही

दौनों एकसे नजर आते |

फिर असली चेहरा नजर आता

खराब होते प्याज का

या विघटित होते समाज का

जैसे ही छीला जाता

आंखें गीली कर जाता |

आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर कविता।

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  2. बेहद खूबसूरत....
    पहली बार हूं आपके ब्लॉग पर...अच्छा लगा..

    अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से 1 ब्लॉग सबका

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  3. बिलकुल सटीक बिम्ब लिया है प्याज का आपने ! यहाँ ऐसे ही लोग हैं जो पर्त दर पर्त प्याज के छिलकों की तरह ही आवरण ओढ़े रहते हैं और जब अपने असली रूप में नज़र आते हैं बहुत तकलीफ देते हैं ! बहुत सार्थक एवं सुन्दर रचना ! बधाई !

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  4. सुन्दर उपमा का प्रयोग ...समाज और प्याज..वाह !!

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  5. आचरण समाज का

    है प्याज के छिलके सा

    जब तक उससे चिपका रहता

    लगता सब कुछ ठीक सा |


    बहुत सही बात काही आपने।

    सादर

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  6. ये तो हैं अंदर की बातें

    बाहर से सब एक दीखते

    आवरण से ढके हुए सब

    अच्छे प्याज की मिसाल दीखते |



    आज के समाज का सुन्दर चित्रण
    कविता के लिए बधाई स्वीकार करें

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  7. बेहतरीन बिम्ब प्रयोग ……………सारी सच्चाई बयाँ कर दी।

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  8. बहुत ही खूबसूरत शब्द विन्यास, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  9. क्या खूब लिखा है । सडता प्याज और आज का समाज । होना चाहिये अच्छे प्याज सा जो अनेकता में भी एकता लिये एकजुट रहे ।

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  10. प्याज का बिम्ब और समाज ... अच्छा प्रयोग है बहुत ही ...

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  11. वाकई, प्याज के छिलके सा आचरण ही है...

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