अपनी ही दुनिया में
भावनाओं में बहता
कल्पना की उड़ान भरता
उड़ान जितनी ऊंची होती
वन उपवन में जब घूमता
वृक्षों का हमजोली होता
पशु पक्षियों को दुलराता
कहीं साम्य उनमें पाता
जब बयार पुरवाई बहती
जीवन में रंग भर देती
बैठ कर सरोवर के किनारे
जल की ठंडक महसूस कर
किनारे की गीली रेत पर
कई आकृतियाँ उकेरता
रेती से घर बनाना
फूलों से उसे सजाना
मन को आल्हादित करता
नौका में बैठ कर अकेले
उस पार आने जाने में
जल में क्रीड़ा करने में
मन मगन होता जाता
जाने कब चुपके से
कागज़ की नौका बना
जल में प्रवाहित करता
बढती नौका के साथ साथ
दौड लगाना चाहता
रूमाल से मछली पकडने का
आनंद भी कुछ कम नहीं
खुद को रोक नहीं पाता
बचपन में ही खो जाता |
आशा
आशा
बचपन ही तो है मनमौजी.....
जवाब देंहटाएंफिर कहाँ ऐसी मौज मस्ती..
सुन्दर रचना आशा जी.
अनु
बचपन की मस्ती होती ही मजेदार है
जवाब देंहटाएंबड़े होने पर बहुत याद आता है बचपन..
बहुत सुन्दर,,प्यारी रचना...
:-)
बचपन जीवन का स्वर्णिम काल होता है...बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंभुलाए भी नहीं भूलते बचपन के वो दिन ..
समग्र गत्यात्मक ज्योतिष
बचपन की अनेकों खूबसूरत स्मृतियों को जगाती बहुत प्यारी रचना ! हर पंक्ति अपने साथ हाथ पकड़ कर जैसे साथ लिए जाती है !
जवाब देंहटाएंबचपन की मस्ती में सराबोर सुंदर रचना,,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
har line khoobsurat......
जवाब देंहटाएंबचपन की सुन्दर यादें..बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivyakti
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