नव निधि आठों सिद्धि छिपी
इस वृह्द वितान में
जब भी जलधर खुश हो झूमें
रिमझिम बरखा बरसे
धरती अवगाहन करती
अपनी प्रसन्नता बिखेरती
हरियाली के रूप में |
नदियां नाले हो जल प्लावित
बहकते ,उफनते उद्द्वेलित हुए
बहा ले चले सभी अवांछित
अब उनका स्वच्छ जल
है संकेत उनकी उत्फुल्लता का
वह खुशी शब्दों में व्यक्त न हो पाई
पर ध्वनि अपने मन की कह गयी |
पर सागर है धीर गंभीर
जाने कितना गरल समेटा
उसने अपने उर में
कोइ प्रभाव उस पर न हुआ
रहा शांत स्थिर तब भी
|
पर सागर है धीर गंभीर
जवाब देंहटाएंजाने कितना गरल समेटा
उसने अपने उर में
किसी संत महात्मा की तरह???
बहुत सुन्दर....
सादर
अनु
प्राकृति के अनेक रूप हैं ... कुछ अलग से .... अपनी अलग अलग रंगता लिए ...
जवाब देंहटाएं१५ अगस्त की बधाई ..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद!
बहुत सुन्दर रचना ! नदिया और सागर में यही तो अंतर है ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति,बढ़िया रचना,,,,,
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
जमाखोर हैं कोठी में और देशभक्त हैं सड़कों में।
जवाब देंहटाएंसंसद है गूँगा-बहरा और शोर उठा है सड़कों में।।
उत्तम रचना....
जवाब देंहटाएंसादर।
हहर हहर हहराय तलैया, नदी काट तटबंध |
जवाब देंहटाएंबड़ी बाढ़ की आफत भैया, जलधारा हो अंध |
जलधारा हो अंध, बहाए सकल सम्पदा |
फैली फिर दुर्गन्ध, बड़ी भरी थी विपदा |
पीकर सागर शांत, भूमि का गरल समेटा |
रही धरा हरियाय, नया जीवन फिर भेंटा ||
बहुत सुन्दर रचना .............सागर की विशेषता ही उसकी महानता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर , अति सुन्दर .
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
कल 19/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
वर्षा ऋतु में क्या बादल क्या नदी नाले सब अपनी खुशी अपना जोर जोर शोर से जाहिर करते हैं । सागर लेकिन शांत सब कुछ समेटे अपनी सीमा में रहता है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर भाव लिए रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
प्रकृति को लेकर उतम भाव
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