19 सितंबर, 2012

शिकायत


है मुझे शिकायत तुमसे
दर्शक दीर्घा में बैठे
आनंद उठाते अभिनय का
सुख देख खुश होते
दुःख से अधिक ही
द्रवित हो जाते
 जब तब जल बरसाते
अश्रु पूरित नेत्रों से
आपसी रस्साकशी देख 
उछलते अपनी सीट से
फिर वहीँ शांत हो बैठ जाते
जो भी प्रतिक्रिया होती
अपने तक ही सीमित रखते
मूक दर्शक बने रहते
अरे नियंता जग के
यह कैसा अन्याय तुम्हारा  
तुम अपनी रची सृष्टि के
कलाकारों को देखते तो हो
पर समस्याओं से उनकी
सदा दूर रहते
उन्हें सुलझाना नहीं चाहते
बस मूक दर्शक ही बने रहते |
क्या उनका आर्तनाद नहीं सुनते
 ,या जानबूझ कर अनसुनी करते
या  मूक बधिर हो गए हो
क्या तुम तक नहीं पहुंचता
कोइ समाचार उनका
 हो निष्प्रह सम्वेदना विहीन
क्यूँ नहीं बनते सहारा उनका |
आशा






19 टिप्‍पणियां:

  1. आज इंसान खुद को खुदा से ऊपर समझने लगा है ... वो भी क्या करे ...

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  2. वाकई कभी-कभी ऐसा ही लगता है कि भगवान बिलकुल तटस्थ हो जाता है हम लोगों की तकलीफों से ! लेकिन शायद यही उसका न्याय होता है ! और इसी में हमारी कुछ भलाई छिपी होती है ! सुन्दर प्रस्तुति ! बहुत खूब !

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  3. बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति..

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  4. एक सच को कहती संवेदनशील रचना।

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  5. बहुत बढ़िया ..संवेदशील रचना..
    सादर

    अनु

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  6. वाह ... बेहतरीन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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  7. भगवान की स्थिति--- एक अनार सो बीमार
    वाली है.खैर हम इंसान भी जाएं तो कहां जाएं.

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  8. इंसानों से गुज़ारिश ही कर सकते हैं कि वो ईश्वर के कामों में दखल ना दे

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  9. जब तुम्ही अपनी आवाज़ (अन्तर -आत्मा ) नहीं सुनते ,वह क्यों सुने भाई ?ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता अपने आप करतें हैं ओर इस भाग्यवाद से मुक्त हैं .अच्छा इस्तेमाल है जब मर्ज़ी हांडी उसके सिर पे फोड़ दो ,अपने गिरेबान में झांकना ,छोड़ दो .
    समय करे नर क्या करे समय समय की बात ,
    किसी समय के दिन बड़े किसी समय की रात .
    यह दर्शन ही तो आदमी को नाकारा बना रहा है .रचना अच्छी है .भाग्यवाद का पल्लवन है .

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  10. ईश्वर से भी शिकायत .... अच्छी प्रस्तुति

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  11. ईश्‍वर के मौन रहने पर हमें उनसे भी शि‍कायत हो ही जाती है....

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  12. सुंदर और संवेदनात्मक रचना ... बधाई !

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  13. समय आने पर उसे भी जवाब देना ही होगा ......बहुत सुन्दर

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