22 सितंबर, 2012

पहरा

क्षणिका :-
विचारों की 
सरिता की गहराई 
 नापना चाहता 
पंख फैला नीलाम्बर में 
उड़ना चाहता 
तारों  की गणना
करना भी चाहता
पर चंचल मन
 स्थिर नहीं रहता
 उस पर भी
रहता पहरा |
आशा

13 टिप्‍पणियां:

  1. मन ही तो स्थिर नहीं हो पाता...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  2. विचारों की
    सरिता की गहराई
    नापना चाहता
    पंख फैला नीलाम्बर में
    उड़ना चाहता
    तारों की गणना
    करना भी चाहता
    पर चंचल मन
    स्थिर नहीं रहता
    उस पर भी
    रहता पहरा |
    आशा
    हाँ !अब विचारों की होती है निगहबानी ,चिरकुटों को नहीं होती हैरानी ,जिसे देखो भरता है ,चिलम ,भरता है पानी .
    ram ram bhai
    शनिवार, 22 सितम्बर 2012
    असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति......

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  4. चंचल मन की गति को खूब पहचाना ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! बधाई !

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  5. सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , अपना स्नेह प्रदान करें.

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  6. आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद टिप्पणी करने के लिए |
    आशा

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  7. पर चंचल मन
    स्थिर नहीं रहता
    उस पर भी
    रहता पहरा...sahi bat...

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