विचारों की सरिता की गहराई नापना चाहता पंख फैला नीलाम्बर में उड़ना चाहता तारों की गणना करना भी चाहता पर चंचल मन स्थिर नहीं रहता उस पर भी रहता पहरा | आशा हाँ !अब विचारों की होती है निगहबानी ,चिरकुटों को नहीं होती हैरानी ,जिसे देखो भरता है ,चिलम ,भरता है पानी . ram ram bhai शनिवार, 22 सितम्बर 2012 असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
sundar prastuti ....!!
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen ..!!
pahra to ham insaanon ke liye hi hai ..
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti!
मन को बाँधा नहीं जा सकता
जवाब देंहटाएंमन ही तो स्थिर नहीं हो पाता...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है जी
जवाब देंहटाएंविचारों की
जवाब देंहटाएंसरिता की गहराई
नापना चाहता
पंख फैला नीलाम्बर में
उड़ना चाहता
तारों की गणना
करना भी चाहता
पर चंचल मन
स्थिर नहीं रहता
उस पर भी
रहता पहरा |
आशा
हाँ !अब विचारों की होती है निगहबानी ,चिरकुटों को नहीं होती हैरानी ,जिसे देखो भरता है ,चिलम ,भरता है पानी .
ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
sunder....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति......
जवाब देंहटाएंचंचल मन की गति को खूब पहचाना ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! बधाई !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , अपना स्नेह प्रदान करें.
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत धन्यवाद टिप्पणी करने के लिए |
जवाब देंहटाएंआशा
पर चंचल मन
जवाब देंहटाएंस्थिर नहीं रहता
उस पर भी
रहता पहरा...sahi bat...