जब गहराती स्याही रात की 
बेगानी  लगती कायनात भी 
लगती चमक तारों की फीकी
चंद्रमा की उजास फीकी |
एक  अजीब सी रिक्तता
मन में घर करती जाती 
कहर बरपाती नजर आती 
हर आहट तिमिर में |
सूना जीवन उदास शाम
सूना जीवन उदास शाम
और रात की तनहाई
करती बाध्य भटकने को 
वीथियों  में यादों की | 
बढ़ने लगती बेचैनी 
साँसें तक रुक सी जातीं 
 राह कोई फिर भी 
नहीं सूझती अन्धकार में |
क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी 
इस गहराते तम से 
सूरज की किरण झाँकेगी 
बंजर धरती से जीवन में |
कभी तो रौशन हो रात 
शमा के जलने से 
यादों से मुक्त हो 
खुली आँखों में स्वप्न सजें |
आशा 


