अमूल्य रत्न सा मानव जीवन
बड़े भाग्य से पाया
सदुपयोग उसका न किया
फिर क्या लाभ उठाया |
माया मोह में फंसा रहा
आलस्य से बच न पाया
सत्कर्म कोई न किया
समय व्यर्थ गवाया |
भ्रांतियां मन में पालीं
उन तक से छूट न पाया
केवल अपना ही किया
केवल अपना ही किया
किसी का ख्याल न आया |
बड़े बड़े अरमां पाले पर
कोई भी पूरे न किये
केवल सपनों में जिया
यथार्थ छू न पाया |
अमूल्य रत्न को परख न पाया
समय भी बाँध न पाया
पाले मन में बैर भाव
पृथ्वी पर बोझ बढ़ाया |
आशा
वाकई अपना जीवन व्यर्थ गँवाया ! आईना दिखाती सटीक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबिलकुल यथार्थ कथन है ; मेरी कविता "कुछ पता नहीं " की तीसरी कड़ी से तीन पंक्ति इसी सन्दर्भ में :
जवाब देंहटाएं"हे इश्वर! तुमने मुझे भेजा यहाँ
देकर कुछ काम मुझे ,
भूल भुलैया में फंस गया मैं , निकलू कैसे ,क्या करूँ ? कुछ पता नहीं."
सोचने पर विवश करती सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut sunadar..sochane ko vivash karti rachna..
जवाब देंहटाएंयूं ही व्यर्थ हो रहा ये नरदेह ......
जवाब देंहटाएंचिन्तनशील और मौजू कलम ....
विचारणीय अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंसादर
सार्थक सन्देश देती बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंbhawpoorn......
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती भावपूर्ण रचना,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : बस्तर-बाला,,,
अपने यथार्थ को सोचने को मजबूर करती कविता
जवाब देंहटाएंbilkul theek kaha aapne
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