18 जनवरी, 2013

अमूल्य रत्न सा ----


अमूल्य रत्न सा मानव जीवन 
बड़े भाग्य से पाया 
सदुपयोग उसका न किया
फिर क्या लाभ उठाया |
माया मोह में फंसा रहा 
आलस्य से बच न पाया 
सत्कर्म कोई न किया 
समय व्यर्थ गवाया |
भ्रांतियां  मन में पालीं 
उन  तक से छूट न पाया
केवल अपना ही किया
 किसी का ख्याल न आया |
बड़े  बड़े अरमां पाले पर 
कोई भी पूरे न किये 
केवल सपनों में जिया
 यथार्थ छू न पाया |
अमूल्य रत्न को परख न पाया 
समय भी बाँध न पाया 
 पाले मन में बैर भाव
पृथ्वी पर बोझ बढ़ाया |
आशा






11 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई अपना जीवन व्यर्थ गँवाया ! आईना दिखाती सटीक प्रस्तुति !

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  2. बिलकुल यथार्थ कथन है ; मेरी कविता "कुछ पता नहीं " की तीसरी कड़ी से तीन पंक्ति इसी सन्दर्भ में :
    "हे इश्वर! तुमने मुझे भेजा यहाँ
    देकर कुछ काम मुझे ,
    भूल भुलैया में फंस गया मैं , निकलू कैसे ,क्या करूँ ? कुछ पता नहीं."

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  3. सोचने पर विवश करती सुंदर प्रस्तुति

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  4. यूं ही व्यर्थ हो रहा ये नरदेह ......
    चिन्तनशील और मौजू कलम ....

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  5. विचारणीय अभिव्‍यक्ति ...
    सादर

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  6. सार्थक सन्देश देती बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति..

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  7. अपने यथार्थ को सोचने को मजबूर करती कविता

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