सुनामी सा उनमुक्त कहर
कुछ अधिक ही हानि पहुंचाता
हो निर्भय अंकुश विहीन
स्वच्छंद हो विनाश करता |
निरंकुशता समुन्दर की
है कितनी विनाशकारी
अनुभव कटु करवाती
जब भी तवाही आती |
यही आचरण उसका
ना सामाजिक ना भय क़ानून का
उत्श्रंखलता से लवरेज विचरण
बनता नासूर समाज का
जीना कठिन कर देता |
आम आदमी निरीह सा
ज्यादतियां सहता रहता
यदि किसी ने मुंह खोला
जीना मुहाल होता उसका |
आशा
गहन रचना.....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
sunder rachna
जवाब देंहटाएंउफ्फ खरा सत्य बयां किया है आपने आदरेया
जवाब देंहटाएंbehad gambhir aur yatharth ki bebak prastuti
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जवाब देंहटाएंविभीषिका का सुन्दर चित्रण
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (30-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप सब को मेरी और से हार्दिक शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुंदर गहन रचना
जवाब देंहटाएंRECENT POST: होली की हुडदंग ( भाग -२ )
बहुत ही बढ़िया आंटी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंsundar rachna..
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जवाब देंहटाएंप्राकृत आपदाओं के ज़रिये राजनीतिक धंधे बाजों और उन्मुक्त विहारियों पे व्यंग्य .
सुनामी के कहर का प्रभावी चित्रण ! एक सुंदर रचना !
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