प्यार का इज़हार
या उपकार |
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उपकार का
यदि सिलसीला हो
कृपण न हो
(२)
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उपकार का
यदि सिलसीला हो
कृपण न हो
(२)
पहली बारिश सी
सूखा न रहा |
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रहा अधूरा
जीवन तेरे बिन
सूना ही रहा
(३)
बेरंग तेरे बिना
कुछ भाए ना |
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भाए ना यह
रंग भरी ठिठोली
तुम आजाना |
(4)
बिखरी यादें
समेटने की चाह
है गलत क्या|
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क्या बिगड़ता
यदि समझी होती
मन की बात |
(५)
कठिन राह
पहुँच न पाऊंगा
हो चाँद तुम |
(५)
बहती जाती
नौका मझधार में
हो पार कैसे |
(4)
बिखरी यादें
समेटने की चाह
है गलत क्या|
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क्या बिगड़ता
यदि समझी होती
मन की बात |
(५)
कठिन राह
पहुँच न पाऊंगा
हो चाँद तुम |
(५)
बहती जाती
नौका मझधार में
हो पार कैसे |
बहता जल
है तरंगित मन
हरीतिमा सा |
आशा
है तरंगित मन
हरीतिमा सा |
आशा
गहन बात कहती हुई सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी हेतु |
हटाएंखुबसूरत !
जवाब देंहटाएंहाइकू औ हाईगा !
सखी / वाह वा :)
टिप्पणी हेतु धन्यवाद |आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है |
हटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर एवँ सार्थक हाईकू एवँ हाईगा ! मन प्रसन्न कर दिया आपने ! मेरी बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
हटाएंबहुत ही शानदार और लाजवाब ...
जवाब देंहटाएं:-)
धन्यवाद रीना जी |
हटाएंलाजवाब ....सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंहाइकु एवं हाईगु (चित्र काव्य ) दोनों अर्थ पूर्ण हैं !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
धन्यवाद कालीपद जी |
हटाएंक्या बात वाह! अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंतीन संजीदा एहसास
टिप्पणी हेतु धन्यवाद गाफ़िल जी |
हटाएंसुन्दर हाइकु
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
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