17 जून, 2014

क्या से क्या हो गयी


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बरस दर बरस बीत गए
पुस्तकों से दूर हुए
पलट कर  न देखा कभी
क्या हाल हुआ उनका |
सोचा अब क्या लाभ
समय बर्बाद करने का
दो काम अधिक हो सकते हैं
यदि उनको लेकर ना बैठी |
समय चक्र चलता गया
व्यस्तता कम न हो पाई
आज अचानक जाने क्यूं
पुराना जखीरा ले बैठी |
बहुत पुरानी  पुस्तक थी
अक्षर घूमिल से लगे
चिन्हित अंश देखते ही
मैं विगत में खो गयी |
थी यह सबसे प्रिय मुझे
कैसे विस्मृत हो गयी
हुआ फिर  अहसास
 रचे गए आडम्बर का |
छलकी  आँखें नीर बहा 
थमने  का नाम नहीं लेता 
फिर भी सोचती रही 
मैं क्या से क्या हो गयी |

आशा

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