
कोरी रही स्लेट 
कागज़ भी कोरा 
बन न पाए अक्स 
मन के आईने पर  |
मन के भेद 
जब भी  उजागर होते 
लिपि बद्ध  किये जाते 
प्रथम दृष्टा वे ही होते |
अश्रुओं की बरसात से 
अक्षर धूमिल होने लगते 
कागज़ फट जाता 
कॉपी के पन्ने सा |
स्लेट की लिखावट मिट जाती 
जल से धुल जाती 
वह कोरी ही रह जाती
कुछ नया लिखने के लिए |
मन पर अंकित चिन्ह न मिटते
कुछ नया लिखने के लिए |
मन पर अंकित चिन्ह न मिटते
 जो निशान रह जाते शेष 
अमित छाप  मन पर छोड़ते 
धूमिल तक नहीं होते |
कभी शूल से चुभते धूमिल तक नहीं होते |
कभी प्यार से सहारा देते  
सुख दुःख में साथ खड़े 
मन के मीत होते |
हर स्वप्न  प्रभावित करता
खुद ही अर्थ निकालना होता 
वे मन में जब तक रहते
विचार घुमढ़ते रहते
वे मन में जब तक रहते
विचार घुमढ़ते रहते
आशा 
 
 
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