नव स्वप्न
मन ने एक स्वप्न सजोया
छोटा सा घरोंदा बनाया
था हरियाली से भरपूर
चहु ओर बरसता नूर |
प्रातः काल द्वार खुलते ही
सौरभ सुमन स्वागत करता
शीतल पवन आकृष्ट करता
डाल पर डाला झूला
मंथर गति से हिलता |
पास ही झरने की कलकल
पक्षियों की चहचहाहट
जल में अक्स मेरी कुटीया का
बहुत मनोरम लगता
उठने का जी ना करता |
उठने का जी ना करता |
ऊपर नीलाम्बर में
सूर्य छिपा बादलों में
उन से अटखेलियाँ करता
यदि पंख मुझे भी मिलते
उस खेल में शामिल होती
मन उमंग से भरता |
आशा
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