:-जाना चाहती हूँ दूर बहुत
इस भव सागर से
सब कार्य पूर्ण
हो गए
जो मुझे करने थे |
अब मन नहीं लगता
किसी भी कार्य
में
कोई उत्साह नहीं
शेष
थके हुए जीवन में
|
थोड़ा मोह बाक़ी था
बच्चों के बचपन
से
उनका बचपन खो गया
बस्तों के बोझ तले |
अब ऐसा कोई नहीं
जिस से सांझा कर
पाऊँ
अपने मन की बातें
और बाँट पाऊँ प्यार
|
थका हारा शरीर
कहीं जाने नहीं
देता
बोझ लगता मुझे
घर से निकलना |
अब धरती पर
बोझ बढ़ा रही हूँ
अकर्मण्यता की
मिसाल
होती जा रही हूँ |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: