31 अगस्त, 2014

जाना चाहती हूँ


  
 


:-जाना चाहती हूँ दूर बहुत
इस भव सागर से
सब कार्य पूर्ण हो गए
जो मुझे करने थे |
अब मन नहीं लगता
किसी भी कार्य में
कोई उत्साह नहीं शेष
थके हुए जीवन में |
थोड़ा मोह बाक़ी था
बच्चों के बचपन से
उनका बचपन खो गया
बस्तों के बोझ  तले |
अब ऐसा कोई  नहीं
जिस से सांझा कर पाऊँ
अपने मन की बातें
और बाँट पाऊँ प्यार |
थका हारा शरीर
कहीं जाने नहीं देता
बोझ लगता मुझे
घर से निकलना |
अब धरती पर
बोझ बढ़ा  रही हूँ
अकर्मण्यता की मिसाल
होती जा रही हूँ |
आशा

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