08 अगस्त, 2014

रक्षाबंधन

  •                                                                    
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  •   आज न जाने क्यूं  
  • उदास हुई जाती हूँ  
नहीं  रहा  उत्साह पहले सा
रक्षा बंधन मनाने का |
बाजार में सजी राखी की
 दूकानों पर  भीड़ देखी
कुछ क्षण  के लिए
 कदम  भी ठिठके |
सोचा पास जा कर देखूं
फिर ख्याल आया
जब कुछ लेना ही नहीं
फिर मोह क्यूं पालूँ  |
बीते कल को याद किया
 जा पहुंची उस गली में
मैं खड़ी थी घर के सामने
जहां मनाए सारे  त्यौहार |
अचानक आँखें भर आईं
आज वह खाली था
कोई  नहीं था
जो मेरी राह देखता |
अब अकेले ही रहना है
 जानती हूँ फिरभी न जाने क्यूं
हर वर्ष की तरह
आज भी उदास हूँ |
आशा








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