- आज न जाने क्यूं
- उदास हुई जाती हूँ
नहीं रहा उत्साह पहले सा
रक्षा बंधन मनाने का |
बाजार में सजी राखी की
दूकानों पर भीड़ देखी
कुछ क्षण के लिए
कदम भी ठिठके |
सोचा पास जा कर देखूं
फिर ख्याल आया
जब कुछ लेना ही नहीं
फिर मोह क्यूं पालूँ |
बीते कल को याद किया
जा पहुंची उस गली में
मैं खड़ी थी घर के सामने
जहां मनाए सारे त्यौहार |
अचानक आँखें भर आईं
आज वह खाली था
कोई नहीं था
जो मेरी राह देखता |
अब अकेले ही रहना है
जानती हूँ फिरभी न जाने क्यूं
हर वर्ष की तरह
आज भी उदास हूँ |
आशा
रक्षा बंधन मनाने का |
बाजार में सजी राखी की
दूकानों पर भीड़ देखी
कुछ क्षण के लिए
कदम भी ठिठके |
सोचा पास जा कर देखूं
फिर ख्याल आया
जब कुछ लेना ही नहीं
फिर मोह क्यूं पालूँ |
बीते कल को याद किया
जा पहुंची उस गली में
मैं खड़ी थी घर के सामने
जहां मनाए सारे त्यौहार |
अचानक आँखें भर आईं
आज वह खाली था
कोई नहीं था
जो मेरी राह देखता |
अब अकेले ही रहना है
जानती हूँ फिरभी न जाने क्यूं
हर वर्ष की तरह
आज भी उदास हूँ |
आशा
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