06 सितंबर, 2014

चाय की प्याली में तूफान







झूठ के पैर नहीं होते
सुना था पर भोगा न था
सत्य कभी छिपता नहीं
पढ़ा था पर देखा न था |
बिना बात व्यर्थ की बहस
बातों को तूल देती
मन उद्द्वेलित कर देती
पर सच कुछ और ही होता |
जब तक सत्य उजागर न होता
 विचारों में वह उलझा रहता
चाहे कहीं भी व्यस्त होता
सत्य खोजता रहता  |
किसी  भी कहानी  में
बार बार आते परिवर्तन
सार तक पहुँचने न देते
तब विश्वास दगा देता |
ऐसे किस्से बिना सिर पैर के
 कपोल कल्पित लगते
जब तक निर्णायक क्षण ना आए
समय की बर्बादी लगते |
क्या आवश्यक नहीं
जब तक पूर्ण खोज न हो
मुद्दे चाहे जो हों
सब के सामने न हों |
सारे सबूत जब जुट जाएं
सही सटीक हो बात 
तभी बात खोली जाए
समय का सत्कार हो पाए |
बिना बात बयानबाजी
शोभा नहीं देती
असंतोष को जन्म देती
अपना विश्वास खो देती |
आशा

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