प्रभु तूने यह क्या किया
जन्म मृत्यु के बंधन में बांधा
भवसागर तरना मुश्किल हुआ
कोई आकर्षण नहीं यहाँ |
जब जन्म हुआ तब कष्ट हुआ
जैसे तैसे सह लिया
बाद में जो कुछ सहा
उससे तो कम ही था |
बचपन फिर भी बीत गया
रोना हंसना तब ही जाना
भार
पड़ा जब कन्धों पर
जीना दूभर हो गया |
तब भी शिकायत थी तुमसे
पर समय न मिला उसके लिए
ज्यों ज्यों कमली भीगती गयी
मन पर भार चौगुना हुआ |
बीती जवानी वृद्ध हुआ
बुढ़ापे ने कहर बरपाया
ना मुंह में दांत न पेट में आंत
असहाय सा होता गया |
जाने कब तक जीना होगा
रिसते घावों को सीना होगा
भवसागर के बंधन से
कब छुटकारा होगा |
जाने कब मृत्यु वरन करेगी
इस जीवन से मुक्ति मिलेगी
चाहे तो पत्थर बना देना
मनुष्य का जन्म न देना भगवान |
आशा
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