था राज्य कंस का
बेबस थे नर नार
त्राहि त्राही मची हुई थी
नगरिया मथुरा थी बेहाल |
कान्हां गए वहां
माता पिता को छुड़वाने
कारागार से मुक्त कराने
बदला कंस से लेने |
हुई ब्रज की गलियाँ सूनी
अभाव कृष्ण का खलने लगा
न रही रौनक वहां
और न कोई उत्सव |
विरह वेदना में डूबी
कृशकाय गोपियाँ होने लगीं
अश्रुओं की बाढ़ में
तन मन अपना खोने लगीं |
कृष्ण के एक मित्र ने
नाम था जिनका उद्धव
समझाने का उनको बीड़ा
अपने ऊपर ओढ़ा |
किया प्रस्थान गोकुल को
लिए ज्ञान का झोला
जितना भी वे समझाते
कृष्ण का दाइत्व बताते
ज्ञान की गंगा बहाते
ज्ञान की गंगा बहाते
गोप गोपियाँ सह न पाते |
ज्ञान सारा धरा रह गया
किसी ने भी न सुनना चाहा
एक ही मांग थी उनकी
उनका कान्हा लौटा लाओ
झूटा आश्वासन नहीं चाहिए
कान्हा को ले आओ
द्वेत अद्वेत से क्या लेना देना
कान्हां के बिन गोकुल सूना |
ज्ञान केवल सतही था
जड़ें प्रेम की थीं गहरी
ज्ञान प्रेम से हारा
और तिरोहित हो गया |
ज्ञान केवल सतही था
जड़ें प्रेम की थीं गहरी
ज्ञान प्रेम से हारा
और तिरोहित हो गया |
आशा
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