कितना विशाल
उससे अनुराग
अतुलनीय लगाव
सदा ही मन में बसता
जब कभी तस्वीरें
धुंधली होने लगतीं
देर नहीं लगती उन पर से
धूल झाड़ने में
फिर से उनको
करीने से सजाने में
हर अक्स महत्त्व रखता है
बेजान कोई नहीं
विषद स्थान घेरे है
मन के मंदिर में
छोटी सी कागज की कश्ती
जब जल के संग बहती
सड़क पर कंचों की खनक्
गुड्डे गुड़िया का विवाह
रस्मों कसमों का निवाह
भूल नहीं पाती
वैभवपूर्ण बचपन में गुम
उस संचित पूंजी को
मन में छिपाए रखती हूँ
एकांत में संचित वैभव को
बारम्बार निरखती हूँ |
बारम्बार निरखती हूँ |
आशा
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