उमढ घुमड़ घटाएं छाईं
बिजली कड़की आसमान में
पास के टीन शेड पर
शोर हुआ गिरते ओलों का|
बेमौसम बरसात में
दिन में रात का भान हुआ
बाहर जा कर क्या देखते
लाईट गई अन्धकार हुआ |
यह कैसा अनर्थ हुआआज
खेतों में खड़ी पकी फसलें
मार प्रकृति की न सह पाईं
धरती पर बिछ सी गईं |
बेचारा बेबस किसान
देख रहा अश्रु पूरित नेत्रों से
फसल की यह बरबादी
ईश्वर ने यह क्या सजा दी
सोच रहा मन ही मन में
पूरी फसल नष्ट हो गई
सारी महनत व्यर्थ हो गई
अगले साल कैसे क्या होगा
जबअनाज बोना था
बूँद बूँद जल को तरसे थे
ताल तलैया सब सूखे
नल कूप के स्रोत सूखे |
त्राहि त्राहि तब भी मची थी
पर तब प्रभु ने सुनी प्रार्थना
जल से पूरित बदरा आये
धरती की क्षुधा शांत हो गई |
पर बेमौसम बरसात ने
अधिक ही कष्ट दे दिया
जनजीवन अस्तव्यस्त हुआ
जनजीवन अस्तव्यस्त हुआ
मंहगाई को अवसर मिला |
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