18 जुलाई, 2015

स्वागत वर्षा का




बूँदें वर्षा की 
टपटप टपकतीं
  झरझर झरतीं
धरती तरवतर होती
गिले शिकवे भूल जाती |
हरा लिवास  पहन ललनाएं
कई रंग जीवन में भरतीं 
हाथों में मेंहदी रचातीं
मायके को याद करतीं |
सावन की घटाएं छाईं  
आसमान हुआ  स्याह
पंछियों ने गीत गाया
गुनगुनाने का जी चाहा   |
झिमिर झिमिर वृष्टि जल की
ताप सृष्टि का हरती
वर्षा की नन्हीं बूंदें 
 थिरकती नाचतीं  किशलयों पर|
वे हिलते डुलते मरमरी धुन करते
हो सराबोर जल 
  नृत्य में सहयोग करते
आनंद  चौगुना करते |
नहाती बच्चों की  टोली वर्षा में
 है  यही आनंद वर्षा में नहाने का
सृष्टि के सान्निध्य का |
आशा

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