दो जिस्म एक जान
यूं ही नहीं पाए
है कीमती सलाह
व्यर्थ यूं ही न जाए |
प्यार की सीड़ी चढ़े थे
थामीं बाहें थीं
छोड़ने के नाम से
कांपती वह आज भी |
आज आ बाहों में आजा
कल क्या हुआ उसे भूल जा
यदि क्रोध मन से न गया
सोच क्या होगा भविष्य अपना |
आज आ बाहों में आजा
कल क्या हुआ उसे भूल जा
यदि क्रोध मन से न गया
सोच क्या होगा भविष्य अपना |
आया नहीं तेरा ख़त
वह ताकती रही छत
यदि तुझसे नहीं सहमत
फिर करे क्यूं कवायत |
की तुझसे मुलाक़ात बड़ी शिद्दत से
.हुई पूर्ण आस बड़ी मुश्किल से
खुशियों का ठिकाना न रहा मिल कर तुझसे
सुनने सुनाने का मौक़ा मिला मुझे दिल से |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: