22 जुलाई, 2015

असंतोष

चक्र व्यूह के लिए चित्र परिणाम

सुख साधन जोड़े थे 
उनको जिया जी भर के 
यथा संभव खुशियां  समेटीं 
फिर भी असंतोष मन में |
है यह कैसा चक्रव्यूह 
अभिमंन्यू  सा फैसता गया 
सभी यत्न विफल हुए 
बाहर निकलने में |
कभी पढ़ा था 
संतोषी सदा सुखी 
पर वह रह गया वहीं 
जीवन में न उतर पाया |
आकांक्षाएं बढ़ती गईं 
पूर्ति जिनकी थी असंभव 
संयम की नाव डगमगाई 
समूचा हिला गई |
विकराल रूप ले लहरों ने
बीच भंवर तक पहुंचाया 
जीवन नैया डूब रही 
असंतोष के  भंवर में |
जीवन भार सा हुआ 
संतुष्टि के अभाव में 
खुशियाँ सारी खो गईं 
जीवन के अंतिम पड़ाव में |
आशा




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