यह सावन भी बीत गया
मेंहदी लगी न हाथों में
रंग बिरंगी हरी चूड़ियाँ
न खनक पाईं कलाई में
ना ही धानी चूनर पहनी
जो माँ से रंगवाई
तीज पूजी ना पूजी
जानना चाहते हो क्यूं ?
मन में था अभाव
मायके और भाई का
कोई न था जो मनुहार करे
स्नेह से बुलाए चलाए
स्वीकार करे दिल से
स्वीकार करे दिल से
उपहार घेवर फेनी का
जल्दी से हाथ बढाए
बड़ी राखी की मांग करे
जिसे अपनी पसंद से लाए
जाने कितनी घटनाएं
दृष्टि पटक पर आती जातीं
आँखें नम कर जातीं
चाहता मन लौटना
बचपन की वीथियों में
खो जाना चाहता
उन मधुर स्मृतियों में
आज संतोष इसी में है
यादें भर शेष हैं
जिन पर कोई पहरा नहीं
कोई भी व्यवधान नही
विचारों की निरंतरता में
यादों का साया बना रहता
विचारों की निरंतरता में
यादों का साया बना रहता
मुझे दूर तक ले जाता
अपने बचपन में पहुंचाता |
आशा
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