नम आँखों से पहली बार
देखी धधकती आग समीप से
सब स्वाह हुआ क्षण भर में
श्यमशान बैराज्ञ जागृत हुआ
जीवन से मोह भंग हुआ
देखा जब समुन्दर पहली बार
था असीम विस्तार उसका
कोई ओर न छोर
तट पर बिखरे सिक्ता कण
देखा आवागमन उर्मियों का
फिर भी भय न हुआ
सुनामी ने कहर बरपाया
जन हानि ने भयभीत किया
मन को अस्थिर किया
समय लगा स्थिर होने में
दिन बदले मौसम बदला
प्रकृति ने भयावय रूप दिखाया
अति वृष्टि कैसी होती है
उसका सत्य समक्ष आया
सोया था गहरी नींद में
थी बहुत बारिश
अचानक नीद से जागा
खुद को बहुत अकेला पाया
चारो ओर था जल ही जल
कोई नजर न आया
था बाढ़ का दृश्य भयानक
सारा शहर जलमग्न हुआ
तब जान लगी बहुत प्यारी
प्रभु की याद सताई
गुहार बचाव के लिए लगाई
मिलिट्री ट्रक ने बाहर निकाला
वही लगा अंतिम सहारा
जब तक घर ना आया
अधर में साँसें अटकी रहीं
पहले सा दृश्य फिर से दिखा
मन में भय समाया |
आशा
आशा
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