मंद मंद बहती पवन
अटखेलियाँ करती
फूलों से लदी डालियों से
डालियाँ झूमती
झुक झ्य्क जातीं
कलियाँ चटकटीं
खिलते सुमन
सुरभि का प्रसार
जब भी होता
भ्रमर हो मस्त
वहां खिचे चले आते
गुंजन करते
अपनी सुध बुध खो
गुंजन भवरों का
पुष्पों का मन मोहता
बांधना चाहते उन्हें
अपने आलिंगन में
घुमंतू भ्रमर
एक जगह न रुकते
आगे जाना चाहते
पर बंधन
इतना प्रगाढ़ होता
मुक्त न हो पाते
अपनी नादानी पर
झल्ला कर रह जाते |
आशा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: