है वह पृष्ठ एक किताब का
यूँही नहीं खोला गया
एक अक्षर भी न पढ़ा
एक अक्षर भी न पढ़ा
व्यर्थ समय गवाया गया
क्यूं वह आज तक खुला है
क्यूं वह आज तक खुला है
किस की प्रतीक्षा है ?
ऐसा क्या लिखा है उसमें
ऐसा क्या लिखा है उसमें
जिसे कभी ना पढ़ा गया |
पढ़ना पढ़ाना कोई
बच्चों का खेल नहीं
समय बहुत देना पड़ता है
पढ़ा हुआ गुनने में
खुली रही यदि किताब
खोने लगती अपनी आव
खोने लगती अपनी आव
क्या होगा हश्र उसका जब
खुला हुआ पन्ना बेचारा
स्याही में नहा लेगा
या दाल का सेवन करेगा
जो भी उसपर लिखा गया था
अस्पष्ट इतना होगा
कि पढ़ना तक असंभव होगा
प्रतीक्षा उसे ही रहती है
कोई तो उपाय हो
कि उस पर दृष्टि पड़े
कोई ऐसा पारखी हो
बिना पढ़े ही उसे गुने
किताब की सार्थकता
तभी हुआ करती है जब
पन्ना पन्ना पढ़ा जाए
रसास्वादन उसका
पूरा पूरा किया जाए
आधी अधूरी न रहे
तभी पढ़ना होता सार्थक
अर्थ का जब हो न अनर्थ|
आशा
आशा
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