- बहुत व्यस्त हूँ
मुझे एक नन्हां मित्र मिला है
छोटे से पौधे के रूप में
उसे ही हाथों में लिए हूँ
सहेज रही हूँ
अभी तो गड्ढा किया है
ताजी मिट्टी डाली है
यही इसका धर होगा
जहां यह अपनी
जड़ें जमाएगा
रोज जल से इसे
सिंचित करूंगी
अपने मन की बातें
इससे ही कहूंगी
जब यह बड़ा होगा
हरा भरा वृक्ष होगा
यहीं आ कर
विश्राम भी करूंगी |
आशा
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