थे बाबूजी बुन्देल खंड के
अम्मा राजस्थान की
जन्मी मैं बुंदेलखंड में
पर मालवा न छूटा कभी
बोलते समझते थे सब
अपनी अपनी भाषा
मैंने सुनी मालवी ,मराठी
बुन्देलखंडी ,राजस्थानी
अपने बचपन से आज तक
पर बोली सदा हिन्दी बोली
इसी लिए हूँ हिन्दुस्तानी
स्कूल में आंग्ल भाषा प्रमुख
हिन्दी दूसरे स्थान पर थी
संस्कृत कभी पढ़ न पाई
बहुत ही कठिन लगती थी
पर अब भी सोच नहीं पाती
त्रिशंकू हो कर रह गई
आ न पाई परिपक्वता
लिखने और पढ़ने में
किसी भी भाषा को
अपने में समाहित करने में |
आशा
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