30 जनवरी, 2017

तब और अब



जाने कितनी बार 
थिरके मुरली की धुन पर 
पर वह बात न देखी 
जो थी माधव की मुरली में |
उस मधुर धुन पर नर्तन 
राधा रानी के साथ में 
मन मोह लिए जाती 
जीवन में गति आ जाती |
पहले था पारद धातु सा जीवन 
यहाँ वहां लुढ़कता था 
स्थिर नहीं हो रह पाता था 
पर अब कुछ परिवर्तन तो आया |
है यह कैसा स्वभाव उसका
चंचल उसे बना गया
मनमानी वह करता
स्थिर कभी न हो पाता  |
मोहन को धेनु चराते देखा
काली कमली ओढ़ कर
गौ धूलि बेला में
उन्हें धुल धूसरित आते देखा |
अब वह बातें कहाँ रहीं
गाएं अकेले आती जाती हैं
खुद को असुरक्षित पाती हैं
मोहन की हांक  बिना |
आशा





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