चाहे जब तुम्हारा आना
बातों के लच्छों से बहकाना
यह क्यूँ भूल गए
आग से खेलोगे तो
जल जाओगे
उससे दूर रहे अगर
धुंआ तो उठेगा पर अधिक नहीं
वह दूरी तुमसे बना लेगी
भूल जाएगी तुम्हारा आना
सामीप्य तुमसे बढ़ाना
इन बातों में तथ्य नहीं है
तुम जानते हो अन्य सब नहीं
है अनुचित
अनजान बने रहना
बातों से नासमझ को बहकाना
राह सही क्यूँ नहीं चुनते
सही राह पर यदि न चलोगे
गिर जाओगे सब की निगाहों में
बहकाना भूल जाओगे उसे |
आशा
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