19 मई, 2018

ख्वाब यूं. मचलते हैं








आजकल निगाहों में
 ख्वाब यूं मचलते हैं
यादों का सैलाव सा आता है
उनसे निजात  पाना
आसान नहीं  होता  
जैसे बड़े बेमन से कोर्स की
किताब के पन्ने पलटना
होता कठिन काव्य का प्रेत
निगाहों  की हलचल
इस हद तक बढ़ जाती है
अपलक निहारते रहते हैं
पुरानी यादों में खोए रहते है
सपने तो कई आते है
 पर याद नहीं रहते
कुछ याद रह जाते हैं
कुछ भूल नहीं पाते
नयनों में समाए रहते हैं  
यह तो वही कर सकते हैं
जो दिवा स्वप्न में
रहते व्यस्त
हलचल से यादें
 गहरे पैंठ जातीं हैं
निकलना नहीं चाहतीं
तभी तो आजकल निगाहों में
ख्वाब यूं ही मचलते रहते हैं |
आशा 

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