बैर भाव
आपस में बैरभाव
तिल तिल बढ़ रहा है
गहरे हुए घावों को
मन में हुई दरारों को
अब सहन न कर पाएंगे
यदि यही सिलसिला
चलता रहा तब
हर तरफ शायद
ये कत्लेआम होगा
एक दूसरे से दूरी
इतनी हो जाएगी कि
पहचान ही खो जाएगी
गहरी खाई पट न पाएगी
बारूद पर कदम होंगे
अस्तित्व कहीं खो जाएगा
भाई भाई को न पहचानेगा
मन में गठान पड़ जाएगी |
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